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कुछ लोगों में ढूंढा ख़ुद को,
कुछ के जैसा होना चाहा,
कुछ बिखरी कुछ संचित यादें,
समय ने उनको किया अतर्कित,
रचकर नवल पूर्णतम जीवन,
क्या साथ चले चल सकते हो,
बोलो साथी?
होना तो होना ही होगा,
ना इसका कही अंत होगा,
जिज्ञासा रुकती कभी नहीं,
जीवन अन्वेषण शून्य नहीं,
कौतूहल का लम्बा कछार,
अन्वेषण आशा है अपार,
ऐसे में,
क्या साथ मेरे चल सकते हो,
बोलो साथी?
मुट्ठी में रेत नहीं टिकती,
है सत्य यही मैं सच कहती,
है दृश्य हीन जीवन का तट,
विस्तारित है यह अन्तहीन,
है कोई तट जहां ज्वार न हो?
हिलोलित सागर लहर न हो?
अवसन्न भाव से बैठी हूं,
क्या नज़र मुझे दे सकते हो,
बोलो साथी?
तारों की किरणें क्यों कम्पित?
रितुओं का अनुक्रम क्या कहता?
मधु-शीत-शरद या हो वर्षा,
मैं ही हूं श्रेष्ठा, प्रथमित मैं।
मैं उलझी बैठी भाव बीच
उपवह हंसकर कह बैठा तब
कंटकित है तेरा भाव अजब,
हैं सभी प्रथम, हैं सभी बंधे,
चितंन में डूबी बैठी हूं,
क्या तुम प्रेरक बन सकते हो,
बोलो साथी?
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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