saanjh aai
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रुद्ध है आराधन का द्वार
सफल होगा कैसे आह्वान
मेरे उर का यह सिंधु अथाह
जग दी फिर दर्शन की चाह !
कौन रोकेगा मेरी चाह ?
ह्रदय में चलने दो यह राग
एक पल को तो जागे भाग
वेदना में भी जीवन आग
तपूंगी मैं पीड़ा के बीच
मिटाये कौन मेरा एकांत ?
वेदना के सन्मुख है पर्व
मुझे दारुण दुःख देता आज
आज है महारास की रात
आज करना है कल्मष दाह
देवता भी देखंगे आज
पूर्ण होंगे सबके अरमान
चांदनी थिरक रही मधुवन
जले हैं अम्बर दीप अनंत
चीर कर आज निशा का अंध
चाँद भी उतरा धरती मध्य
उभर आया है आज ये मन्त्र
हो गया जीव आत्म निस्पंद
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