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आषाढ़ …..

saanjh aai
saanjh aai
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आषाढ़ की इस रिमझिम को
धानो के खेत में जाने दो
वृष्टि सुंदरी को इस पल
कुछ सुन्दर गीत सुनाने दो
रोये हुए किसानो को
कुछ दिन तो पर्व मनाने दो !
बच्चे पुलकित खेल रहे हैं
देखो दूब विछौनो पर ,
कुछ देख रहे हैं इंद्र धनुष
अम्बर के नीले आँचल पर
मैं पकड़ूंगी तितली
पीछे पग -पग ही दौडूँगी ,
बागीचे में पके आम भी
विछ जायेंगे धरती पर
कुंजन में जुगनू होंगे
हरसिंगार भी महकेंगे
बेला के गहने पहनूँगी
बन मैं मतवाली महकूंगी !
आँगन में संध्या उतरेगी ,
स्वर्णांचल गगन में फहरेगा
गौवें तब घर को लौटेंगी
चौपाल में मुरली धुन होगी !
देकर ताली सब गातें हैं
“हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे ”
मैं अश्रु आरती लिए नयन
कृष्णा के पंथ निहारूंगी
इस अभिलाषा में आशा की
प्राणो में जोत जलाऊँगी
निरुपाय नयन जब तरसेंगे
हा !तभी जगत पति आएंगे !!

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