saanjh aai
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देखना चाहूँ सब संसार ,
प्राणो को प्लावित कर अपार !
सब काल वहन कर लूँ खुद पर ,
तैर कर जा पहुंचूं उस पार !
करुणा की धार बहाऊंगी ,
पाषाण की कारा तोड़ूँगी !
फूलों की गंध वसा लूंगी ,
रवि की किरणों पर दौडूँगी !
शिखर -शिखर को चूमूंगी ,
सॉरी वसुंधरा डोलूँगी !
निज ह्रदय की बातें कह दूँगी ,
हर प्राण गान में मैं हूँगी !
इतना सुख साध मेरे मन में ,
तारे जितने नभ मंडल में !
सब गूँथूँगी इक माला में ,
यौवन सा वेग है प्राणो में ,
आशा असीम है इस मन में ,
भावों के गीत भरे मन में !!
एक था मन -शकुंतला मिश्रा
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