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गंगा

saanjh aai
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गंगा किनारे,

प्रसन्नता से विभोर

बैठे एक नाव पर

नाविक की लयबद्ध ताल

हिलोरता मन

सुखद लगी धड़कन

सुवासित  सी,प्राणित सी

सन्देश वाहिनी शीतल हवा !

ले चली मुझे स्वर्गिक सोपान पर

मैंने पहना बादलो़़ं का मुकुट

देवलोक में  ,देवक्षेत्र में

सहज वेग में प्रशान्त गंगा

सरसराती आहट ,लहराें की लोरी

समाने को आतुर दिव्य उपहार !

चुपके से लिख गई

एक ख़ूबसूरत भाव <
को अर्पण किया इस तरह

जैसे कोई सरिता विलीन हो समंदर में !
सहस्त्रो बार नमित हुआ मन
आनंद पुलिन में
प्रेम के शास्वत पल को ,
राधा -कृष्ण की अमृता को
ऐश्वर्य से भरी इस यात्रा को
इस प्यार भरे मिलन को
समर्पित हूँ !समर्पित हूँ !!

शकुन्तला मिश्रा -गंगा

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