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एक संध्या

saanjh aai
saanjh aai
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साँझ समय,
पीताभ अम्बर !
दुर्जय सा दृश्य दिखाता है !
निरभ्र, शांत
दिगंत प्रसार
ज्यों अनंत को लील जाता है !
पंक्षियों की कतार
अनुशाषित उड़ान
शांत निर्धूम घर को जाता है !
आती निशा ,
निद्रित दिशा
ब्रम्ह लीन हुआ जाता है !
अधीर मन ,
आकुल क्षण

रात भर को विश्राम को जाता है !

शकुंतला मिश्रा -एक साँझ

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