saanjh aai
- 70 Posts
- 135 Comments
साँझ समय,
पीताभ अम्बर !
दुर्जय सा दृश्य दिखाता है !
निरभ्र, शांत
दिगंत प्रसार
ज्यों अनंत को लील जाता है !
पंक्षियों की कतार
अनुशाषित उड़ान
शांत निर्धूम घर को जाता है !
आती निशा ,
निद्रित दिशा
ब्रम्ह लीन हुआ जाता है !
अधीर मन ,
आकुल क्षण
रात भर को विश्राम को जाता है !
शकुंतला मिश्रा -एक साँझ
Read Comments