saanjh aai
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चलो आज बारिश की बूंदे चुरा ले ,
ज़माने के गम सारे उसमे डूबा दें !
अम्बर की छतरी को मंडप बना के ,
नवल राग ,रंगो की धरती से चुन के
चलो आज जीवन में खुशियां मना लें !
बहा देंगे अबके बरस सारे गम को ,
नदी ज्यों चले है समंदर मिलन को !
पपीहे ने छेड़ा तरंगित सुरों को ,
चलो आज हम इक नए सुर में गा लें !
चलो आज बारिश से बूंदें चुरा लें !
चलो आज …शकुंतला मिश्रा (अभया )
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