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ग़ज़ल

saanjh aai
saanjh aai
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क्यों डराये घन घनेरे ,छटेंगे अब सब अँधेरे
सूरज ने दी बधाई इक दिए को है सवेरे !

चाह अब मुझको नहीं, मखमल बिछे हो राह में
दर्द भी अब सहज लगता ,जीवन छिपा है दर्द में !

अनसुनी और तंग गलियों ,मेरे दिल कि आह तुम हो
फिर तुम्हारी राह का हम सा कोई रहबर न हो !

खुशियों को अनदेखा करके ,थोडा दर्द सहेजा मैंने
दर्द है सस्ता ,दर्द सुलभ भी ,यही जिंदगी चुनी ली मैंने !

कई जनम का कर्ज है शायद ,मौत के हाथों पाया जीवन
सपनो कि लम्बी गलियों में टुकड़ा -टुकड़ा पाया जीवन !

परिवार ,फर्ज और नाते हैं पर ह्रदय का अंतर खाली है
आँखों कि चित्रपटी में धरती ,अम्बर और पाँखी हैं !

खुछ खुशियों में सिमटा जीवन ,उड़ता ज्यों नभ में बादल
गर्मी सांसों कि कहती है ,तू नियति के साथ चला -चल !

कभी सुख है ,कभी दुःख है ,कभी है उलझा सा जीवन
हाथ में पड़ गए छाले ,जब चली सुलझाने ये मन !

कुछ नहीं कल से लिया है ,कुछ नहीं कल को दिया है
मौत के आने से पहले ,सोच क्यों जीवन मिला है !

एक मुट्ठी आसमा मेरा कही अपना भी हो
आदि से अंत के बीच ,इक आशियाँ मेरा भी हो !

रौशनी से रिश्ता जोड़ा ,रात ने जब
हर सितारे ने कहा -अदब है अब !

ग़ज़ल -शकुंतला मिश्रा

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