saanjh aai
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कण -कण सुंदरता विहरी
शीतल ,निर्मल विभावरी !
नवल चुम्बित निर्जन वन ,
कली- कली है उभरा मन
आया वसंत सजन !
प्रियतम परिणय बेला
धरती अम्बर बोला
लगा सुमिलन मेला
निर्जन न हो अकेला
मुक्त नव प्रसंग सजन !
नस -नस उमंग भरा
पूरित हुई है धरा
पुलकित अम्बर ने वरा
चपला सुरभि से तरा
सजल सकल अंग सजन !
युवा है वसंत काल
पहने कलियों कि माल
भरी है रंगो से थाल
ता ता थई थई कि चाल
परिमल हर साज सजन !
स्वर्ग तो यही है सजन !
वसंत आया -शकुंतला मिश्रा
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