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माँ

saanjh aai
saanjh aai
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फटे पुराने ‘ कभी गंदे ,तुड़े मुड़े वस्त्र में
एक सुन्दर काया ,जैसे दही का एक बड़ा सा टुकड़ा
ले कर उससे तुम्हारा चेहरा बनाया गया हो
सुन्दर माथे पर लाल ,गोल बिंदी जैसे गुलाब की
फूटती कली ऐसी दिखती थी मेरी माँ !
सुन्दर ,सुडौल काया ,सुन्दरता की मूरत
सारे रिश्ते जैसे उसी में समाये हों
पत्नी ,वधु ,भाभी ,बहन ,माँ ,पड़ोसन
सारे रिश्तों के बीच जीवन भर नाचती रही माँ
रिश्तों ,रिवाजो ,कर्तव्यों के बीच
आधी सोई ,आधी जागी हुई माँ
थकी ,अलसाई भरी दुपहरी सी माँ
तमाम लहरों को खुद में समेटे हुए
समंदर जैसी माँ
जीवन की कामयाबी के बीच
दुआओं जैसी माँ
,

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