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अर्ध्य

saanjh aai
saanjh aai
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रुको श्वास ! भर अर्ध्य नयन का
सूरज को यह फूल जवा का
दे तो दूं मैं !
एक अमोघ अनिवार्य दान भी
ले तो लूं मैं !
जो जिया गया ,जो किया गया
इस लोकालय में
सब विस्मय आह
मिटा तो लूं मैं !
इस पावन क्षण में पल भर अर्ध्य
चढ़ा तो लूं मैं !
जी लूं मैं संकल्प जगत में
यह आशीष जगत कर्ता से
पा तो लूं मैं !
अनसुनी आह ,सूना अन्तः ,गुजरी बातें
सब कह तो दूं मैं !
तिमिर रात्रि आने से पहले
भोर का वादा ले तो लूं मैं
स्वच्छ ह्रदय से सुमनांजलि दे
अपने पिय को
रिझा तो लूं मैं !
कुंदन भरे प्रभा मंडल से
अपनी झोली
भर तो लूं मैं !

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