saanjh aai
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मुझको सफ़र का गम नहीं !
हर सुबह सफ़र से कम नहीं !
सफ़र के बाद मुझे फ़िक्र
मेरे घर की है !
जमी थी एक बर्फ रिश्तों की !
दरक के गिर गई दीवार जख्म बाकी है !
जो पर लगा के उड़ाई वो उड़ नहीं पाई !
ये बात अब जो उडी है बग़ैर पर की है !
जब मैं राजी हुआ सर झुकाने को !
पलट के बोला वो अब तो जरूरत सर की है !
उन्हें है इल्म मगर बात बना लेतें है
हमें बिखेरने वाली फिजा किधर की है !
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