saanjh aai
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तौल खुद को !
तू प्रवासी देश का है !
ज्योति दे अपने हिये को
कर सवेरा !
साँझ आई !
कह रही है -जो थिरा सो जाय !
अब्यक्त भी खो जाय !
मरुत -मरण यदि आय !
आय जो सो आय !
धीर रख अपने हिये को
छोड़ तू बीते दिवस को !
अवसाद के हर क्षण जला तू !
निकल चल तू ,
बन के साक्षी
निज दिवस का
तू प्रवासी चल अकेला !
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